19/9/17

बुद्धिमान मछलियाँ और डरपोक मेंढक

आधी रात के समय एक तालाब में सभी जीव शांति से सो रहे थे, लेकिन एकबुद्धि नाम का एक मेंढक बहुत ही बेचैन था। उसकी बेचैनी का कारण शाम की वह घटना थी जिसकी वजह से उसे आज रात ही यह तालाब छोड़ कर किसी दूसरे तालाब में जाना पड़ सकता था। हालांकि उसके दो बहुत ही ख़ास मित्रों ने उसे तालाब न छोड़ कर जाने की सलाह दी थी।

उसके ये दो मित्र शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि नाम की दो बड़ी मछलियाँ थे। अपने नाम की ही तरह शतबुद्धि अगर बुद्धिमान था तो सहस्त्रबुद्धि अति बुद्धिमान। एकबुद्धि की दोस्ती जब से इन दोनों से हुई थी तब से ही उसका समय बहुत अच्छा बीत रहा था। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि उसे तमाम ज्ञानवर्धक बातें बताते तथा अपनी तरह-तरह की कलाबाजियों तथा करतबों से उसका खूब मनोरंजन करते।

आज शाम को भी एकबुद्धि अपने इन्ही दोनों मित्रों के साथ तालाब के किनारे हँसी-ठिठोली कर रहा था। तभी अपने सर पर मछलियाँ और कंधों पर जाल लादे कुछ मछुआरे तालाब के पास आए और तालाब को बड़े गौर से देखने लगे। कुछ देर तालाब का मुआयना करने के बाद उनमें से एक मछुआरे ने कहा “इस तालाब में बहुत सी मछलियाँ हैं और पानी कम है इसलिए कल सुबह हम सब आयेंगे।“ बस इतना कह कर वे सब चले गए।

मछुआरों की ऐसी बातें सुनकर तीनो मित्र आपस में विचार करने लगे। एकबुद्धि ने कहा “तुम दोनों ने मछुआरों की बात सुनी? अब हमें क्या करना चाहिए? यहाँ रुकना चाहिए या यहाँ से भाग जाना चाहिए?”

यह सुनकर सहस्त्रबुद्धि ने कहा अरे! डरो मत, भला किसी की बात सुनकर भी कोई डरता है। शास्त्रों में कहा है पापियों का कभी भला नहीं होता इसीलिए दुनिया चलती है वरना ये दुनिया कब की ख़त्म हो गयी होती। पहली बात तो ये है कि वे यहाँ आयेंगे नहीं और अगर आ भी गए तो मैं अपनी चालाकी से सबको बचा लूँगा। क्योंकि मैं पानी में तरह-तरह से तैरना और दुश्मन को गच्चा देना जानता हूँ’।

सहस्त्रबुद्धि की ऐसी बातें सुनकर शतबुद्धि बहुत खुश हुआ और बोला, इस दुनिया में एक चतुर के लिए कोई भी चीज असंभव नहीं है। क्योंकि आचार्य चाणक्य ने तो अपनी बुद्धि से ही तलवारधारी नंद वंश के शाशकों का अंत किया था। इसलिए केवल किसी की बात सुनकर ही अपने पुरखों का घर नहीं छोड़ा जा सकता। शास्त्रों में भी कहा है
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

अर्थात् माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं। अरे अपना जन्मस्थान कितना भी खराब हो पर वहाँ जो सुख मिलता है, वह स्वर्ग में भी नहीं मिल सकता।

दोनों की बातें सुनकर एकबुद्धि ने कहा मैं आप दोनों जैसा बुद्धिमान तो नहीं, पर जितना मैं समझता हूँ, इस तालाब को छोड़ देने में ही भलाई है। क्योंकि…

इससे पहले कि एकबुद्धि अपनी बात के पक्ष में कोई तर्क देता शतबुद्धि का पारा चढ़ गया। तुम तो जानते हो कि हम कितने बुद्धिमान हैं। हाँ तुम्हारी बात अलग है, हम ये तो जानते थे कि तुम्हारी बुद्धि कम है पर हमने सोचा भी नहीं था कि तुम इतने डरपोक भी निकलोगे। हम तो यह तालाब छोड़कर जाने वाले नहीं तुम अपना सोच लो, अगर जाना चाहते तो जाओ जल्दी निकलो नहीं तो मछुआरे आ जायेंगे। इतना बोलकर दोनों जोर-जोर से हँसने लगे।

अपने से अधिक बुद्धिमान मित्रों के सामने स्वयं को मूर्ख और डरपोक साबित होते देख एकबुद्धि ने भी उनकी हाँ में हाँ मिला दी। अरे मैं तो बस आप लोगों की राय ले रहा था। मैं भला इतनी सी बात से क्यों डरने लगा। भला अपने इस प्यारे तालाब को छोड़कर मैं क्यों किसी दूसरे तालाब में जाने लगा?

अपने मित्रों के सामने भले ही एकबुद्धि अपने तालाब को न छोड़कर जाने की बात कहकर आया था। लेकिन जैसे-जैसे रात गहराती जा रही थी उसकी चिंता और डर दोनों ही बढ़ते जा रहे थे। अगर मछुआरों ने कहा है कि वे कल सुबह आयेंगे तो उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा? क्या वे किसी और काम से भी इस तालाब में आ सकते हैं? अगर उन्होंने जाल फेका तो क्या मैं बच पाऊंगा? अगर एक बार बच भी गया तो क्या मैं बार-बार बच पाऊंगा?

एकबुद्धि बहुत प्रयास करने पर भी अपने मित्रों की बातों पर भरोसा नहीं कर पा रहा था।

अगले दिन दोपहर का समय था। एकबुद्धि एक नए तालाब में था जहाँ वह कल रात में ही आया था। यहाँ उसके पुराने तालाब की तरह न कोई मित्र थे और न ही कोई जान पहचान वाला। सुबह से ही एकबुद्धि यहाँ नए-नए लोगों से जान पहचान बनाने में लगा था। लोग उससे बात कर लेते, उसकी व्यथा सुन लेते और फिर सांत्वना देकर अपने काम में लग जाते। पुराने तालाब की तरह यहाँ कुछ भी नहीं था। न शतबुद्धि और शहस्त्रबुद्धि जैसे मित्र थे न ही अन्य जान पहचान वाले।

पुराने तालाब का कोना-कोना वह जानता था पर यहाँ तो हर जगह नयी थी। जहां भी वह डेरा जमाने की कोशिश करता कोई न कोई उस जगह को अपना बता कर उसे वहाँ से हटा देता। अंततः तालाब के बाहर उसे एक शांत स्थान मिला जहाँ रुक कर वह सोचने लगा।

अभी तक तो इधर से कोई मछुआरे जाते दिखाई नहीं दिए। लगता है वो नहीं आए और मैं भय से झूठ में ही अपने तालाब और अपने मित्रों को छोड़कर भाग आया। वे लोग मेरी मूर्खता पर हँस रहे होंगे। अब मैं क्या मुह लेकर उनके सामने जाऊँगा। तभी उसे कल वाले वही मछुआरे दिखाई पड़े जो पुराने तालाब की ओर से ही आ रहे थे। उन्होंने ढेर सारे मछलियाँ मेंढक, केकड़े और अन्य जीव लादे हुए थे। दो मछलियाँ तो इतनी बड़ी थीं कि उनको बाँधकर उन्होंने अपने कंधे पर लटकाया हुआ था।

एकबुद्धि ने उन दोनों बड़ी मछलियों को पहचान लिया था, वे शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि थे। ये तो प्रत्यक्ष था की उन दक्ष मछुआरों के सामने शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की कोई बुद्धि नहीं चली थी।

उनकी ऐसी दशा देखकर एकबुद्धि को बहुत दुख हुआ। लेकिन अब कल शाम से ही जो चिंता और भय का बोझ था वो उतर गया। उसे अपनी बुद्धि पर भरोसा हो गया था क्योंकि आज सुबह से ही जो मूर्खता और शर्म का भाव था वो आत्मसम्मान और आत्मविश्वास में बदल गया।

उसे अब लगने लगा था कि नए तालाब के लोगों से जल्दी ही उसकी मित्रता हो जायेगी। और वो आराम से यहाँ रह पायेगा। क्योंकि अपने पुराने तालाब को छोड़ कर भागने की जो मूर्खतापूर्ण और दुखभरी कहानी वह यहाँ के लोगों को सुना रहा था वो अब बुद्धिमत्तापूर्ण और सुखद हो चुकी थी।

अब अपनी इस पूरी कहानी को वो इन लोगों को जल्दी से जल्दी सुनाना चाहता था, इसलिए उसने तालाब के पानी में छलांग लगा दी।

तो दोस्तों इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

1. अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग स्किल्स काम आती हैं। मछलियों की जो बुद्धि और तैरने की कला तालाब के जीवों को इम्प्रेस करती थी वो मछुआरों के सामने काम नहीं आयी। इसलिए हमें अपनी स्किल्स और डिग्रियों का घमण्ड नहीं करना चाहिए। और लगातार ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

2. कोई कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो वह अक्सर परिवर्तन का विरोध करता है और इसके लिए तरह-तरह के तर्क और बहाने ढूंढ लेता है। क्योंकि वह अपने कम्फर्ट जोन में रहना चाहता है। जैसे शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने तालाब न छोड़ कर जाने के कई तर्क ढूंढ लिए।

3. कुछ खतरे ऐसे होते हैं जिनसे बचने के लिए आपको मूर्ख और डरपोक साबित होने से भी परहेज नहीं करना चाहिए। स्पेशिअली जहाँ जान जाने का खतरा हो। आजकल लोग अपने आपको बहादुर साबित करने के लिए तरह-तरह के स्टंट करते हैं, खतरनाक जगहों पर सेल्फी लेते हैं, और ब्लू-व्हेल जैसे खतरनाक खेलों में शामिल होते हैं जिसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है।

इसी प्रकार बहुत से छात्र कक्षा में कुछ समझ में न आने पर शिक्षक से पूछने से डरते हैं कि कहीं उन्हें लोग मूर्ख न समझ लें। ऐसे लोगों की असली मूर्खता तो परीक्षा परिणाम आने पर ही साबित होती है।


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3/10/16

घमंडी शेर और नन्हा खरगोश ज्ञानवर्धक कहानी

घने जंगल में एक नन्हा खरगोश भारी क़दमों से चला जा रहा था।

उस घने जंगल में दूर गुस्से में किसी शेर की दहाड़ सुनाई दे रही थी। उसकी दहाड़ इतनी भयावह थी कि जंगल में रहने वाले पशु पक्षी डरकर काँपने लगते।

ऐसे में भी नन्हा खरगोश शेर की दहाड़ की दिशा में चला जा रहा था। जब भी गुस्सैल शेर की दहाड़ सुनाई देती वह नन्हा खरगोश काँप उठता था।

उस गुस्सैल शेर के पास जाने का केवल एक ही परिणाम हो सकता था। मौत! पर आज वह खरगोश जान बूझ कर मौत के मुह में जा रहा था। आज उसे अपने जीवन का बलिदान देना था, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए और उस समझौते के लिए जो न हुआ होता तो शायद वो और उसके जैसे कई अन्य जानवर आज जीवित न होते। उस समझौते के लिए जो जंगल के जानवरों ने उस दुष्ट, गुस्सैल और घमंडी शेर से किया था।

उसे आज भी उस दुष्ट शेर की करतूतें याद थीं। कैसे वह कई-कई जानवरों का शिकार बिना वजह किया करता था। कुछ को खाता और कुछ को ऐसे ही मार कर छोड़ देता था।

शेर मांसाहारी होता है और अपनी भूख मिटाने के लिए जानवरों का शिकार कर और उन्हें खाकर अपना पेट भरता है। पर इस दुष्ट शेर को अपनी ताकत और जंगल का राजा होने का इतना अधिक घमण्ड हो गया था कि वह अपना पेट भरा होने पर भी निरीह जानवरों का शिकार किया करता था।

उस घमंडी शेर के अत्याचारों से तंग आकर जंगल के सभी जानवर उसके पास गए और तभी यह सामझौता हुआ कि रोज एक अलग प्रजाति का जानवर शेर के पास भेजा जाएगा जिसको खाकर शेर अपना पेट भरेगा और किसी अन्य जानवर की हत्या नहीं करेगा। पर शेर ने एक शर्त ये भी रखी कि यदि ऐसा न हुआ तो शेर जंगल के सभी जानवरों को मार डालेगा।

इस प्रकार बेवजह की हत्या से बचने के लिए रोज अलग-अलग प्रजाति के जानवर शेर के पास जाने लगे। और आज नन्हे खरगोश की बारी थी।

नन्हा खरगोश भले ही शेर के सामने शक्ति में कुछ नहीं था पर वह बहुत बुध्दिमान था। और आज पूरे रस्ते वह उस दुष्ट शेर से बचने के उपाय सोचता हुआ जा रहा था। उस शेर से निपटने के उपाय ढूँढते-ढूँढते उसे थोड़ी देर हो गयी। पर यह अच्छा ही था। क्योंकि उसने जो उपाय सोचा था उसके लिए शेर का गुस्सा होना आवश्यक था।

अंततः खरगोश शेर के पास पहुँचा और उसके सामने कुछ दूरी पर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। पहले से ही गुस्साए शेर ने जब अपने भोजन के रूप में नन्हे से खरगोश को देखा तो वो और भी अधिक गुस्सा हो गया।

शेर बड़े जोर से दहाड़ा और बोला “जंगल के जानवरों ने इतनी देर से वो भी एक नन्हे से खरगोश को भेजकर अच्छा नहीं किया। अब मैं सबको मार डालूँगा।“

शेर की ऐसी धमकी सुन कर नन्हा खरगोश बोला “आपके लिए हम पाँच खरगोश चले थे लेकिन रास्ते में एक दुष्ट ने अन्य चार को खा लिया। मैं किसी तरह बचकर छिपते-छिपाते यहाँ तक आया हूँ।“

“तो तुम लोगों ने उसे बताया क्यों नहीं कि तुम लोग मेरे पास आ रहे हो?” शेर ने कहा।

बताया था महाराज लेकिन वो जंगल में नया आया लगता है। उसने हमारी एक न सुनी और कहा कि शेर कौन है उसे तो मैं बाद में देखूंगा पर आज से इस जंगल का राजा मैं हूँ और मैं जो चाहूँगा वही होगा।

इसपर शेर गुस्से से आग बबूला हो गया और बोला वो कहाँ मिला था मुझे बता मैं अभी उसका अंत करता हूँ।

खरगोश ने कहा “वो एक बिल में रहता है अगर आप कहें तो मैं आपको वहाँ ले चलूँ?”

इस प्रकार खरगोश शेर को एक कुएं के पास ले गया और बोला महाराज वो दुष्ट इसी बिल में रहता है। मुझे तो डर लग रहा है आप ही बात कर लीजिये।

शेर कुएं के पास गया और उसमे झांक कर देखा तो उसे कुएं के पानी में अपनी ही परछाईं दिखाई दी। अपनी परछाईं को दुश्मन समझ कर शेर जोर से दहाड़ा। इसपर कुएं में उसकी दहाड़ गूँज गयी और दुश्मन की दहाड़ के रूप में उसे वापस सुनाई दी। शेर ने सोचा ये दुश्मन तो अपने बिल से मुझे ललकार रहा है मैं इसे अभी ख़त्म करता हूँ। ऐसा सोचकर शेर ने कुएं में छलांग लगा दी।

पर ये क्या यहाँ तो कोई दुश्मन नहीं था, था तो सिर्फ पानी। अपनी ताकत के नशे में चूर दुष्ट शेर अब एक ऐसी जगह फंस गया था, जहाँ से निकलना उसके बस की बात नहीं थी। अब उसे इसी कुएं का पानी पी-पी कर मरना था।

इस प्रकार बुध्दिमान खरगोश ने दुष्ट शेर से जंगल के जानवरों को छुटकारा दिलाया।

मित्रों इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है

1. जो काम बल से नहीं हो सकता वो बुद्धि से किया जा सकता है। इसलिए हमें अपनी सफलता के लिए बल और बुद्धि दोनों का प्रयोग करना चाहिए। जिस प्रकार नन्हा खरगोश स्वयं के कमजोर होने पर अपनी बुद्धि से शेर को मारने में सफल हो गया।

2. हमें अपने कार्य सिद्ध करने के लिए नए नए उपाय सोचते रहना चाहिए, जैसे नन्हे खरगोश ने नए उपाय से शेर को ख़त्म किया।

3. हमें अपने गुस्से के वशीभूत होकर अनावश्यक खतरे नहीं लेने चाहिए। जिस प्रकार शेर ने गुस्से में कुएं में कूदकर अपनी जान गवांई।

4. हमें अपनी ताकत का घमण्ड नहीं करना चाहिए।

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13/9/16

बूढ़ा बगुला और केकड़ा ज्ञानवर्धक कहानी

भरी गर्मी की तपती दोपहर में एक बूढ़ा बगुला तालाब के किनारे गर्दन झुकाए शांत भाव से खड़ा था। उसके इस शांत स्वाभाव को देखकर उसके मन में चल रहे भूचालों का अनुमान लगाना मुश्किल था।

जीवन में अलग-अलग फेज़ आते हैं। जब हम बच्चे होते हैं तो माँ-बाप हमारी देखभाल करते हैं, और जब हम जवान होते हैं तब हम अपनी बाजुओं की ताकत, उद्यमिता और बुद्धि से अपना जीवन यापन करते हैं। किन्तु जब बुढ़ापा आता है तब ना तो हमारे माँ-बाप ही होते हैं ना ही हमारी बाजुओं में इतनी ताकत होती है की हम अपना जीवन यापन कर सकें।

बुढ़ापे में दिन प्रतिदिन परिस्थितियाँ बद से बदतर होती जाती हैं। और हमारी सारी इन्द्रियाँ हमारा साथ छोड़ने लगती हैं। और एक ऐसा समय आता है जब हमारे लिए पेट भरना भी मुश्किल हो जाता है। फिर हमें उस अपरिहार्य दुश्मन की शक्ति का एहसास होता है जिससे हम हजारों बार भी जीत जायें पर एक हार ही सब कुछ ख़त्म कर देती है।

आज उस बूढ़े बगुले को अपनी मौत दिखाई दे रही थी। इसी तलब के किनारे कितने ठाठ से हँसी ख़ुशी उसका बचपन और जवानी बीती थी। इस तालाब में खाने लायक इतनी मछलियाँ, मेढक और अन्य जीव थे कि आज तक कभी भी उसने भूखा रहने का सपना भी नहीं देखा था।

लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया और अब बुढ़ापे ने उसे आ घेरा था। एक-एक कर उसकी इन्द्रियाँ और अन्य अंग कमजोर होते चले गए और तालाब से मछलियाँ और मेंढक पकड़ना मुश्किल होता चला गया। आज उसके जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि वो पिछले दो दिनों से भूखा था। और आगे भी भोजन मिलने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी।

लेकिन वह बूढ़ा बगुला हार मानने वालों में से नहीं था। वो अभी और जीना चाहता था और इसके लिए जो भी जरूरी हो और जो भी वह कर सकता था वो करने के लिए वह पूरी तरह से तैयार था। जीने के लिए उसे भोजन की आवश्यकता थी और आज भले ही उसके बल ने उसका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था परन्तु उसकी बुद्धि आज भी उसके साथ थी। और जो काम बल से ना हो सके उसके लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए ऐसा सोचकर वह बूढ़ा बगुला आज बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण और कुटिल योजना के तहत वहाँ खड़ा हुआ था।

तालाब के किनारे गर्दन झुकाए शांत भाव से खड़े बूढ़े बगुले ने बीच-बीच में जोर-जोर से विलाप करना शुरू किया। “हे भगवान इस तलब के जीवों को सद्बुधि दे, और इन्हें महा प्रलय से बचा”।

बगुले का ऐसा विलाप सुनकर तालाब में रहने वाले एक केकड़े ने सोचा जिस बगुले को इस समय मछलियाँ और मेंढक पकड़ने चाहिए वो ऐसी अवस्था में विरक्त होकर विलाप कर रहा है जरूर कोई बात होगी। मुझे इसका पता लगाना चाहिए।

ऐसा सोचकर केकड़ा बूढ़े बगुले के पास गया और पूछा बगुला मामा जब आपको अपनी पेट पूजा करनी चाहिए ऐसे समय में आप यहाँ खड़े होकर विलाप क्यों कर रहे हैं?

इसपर बगुले ने कहा भांजे मुझे जो जानकारी मिली है उसके बाद तो मेरी भूख-प्यास ही मर गयी है। मेरा क्या है मैं तो बूढ़ा हो चुका हूँ। और वैसे भी जल्दी ही मरने वाला हूँ। पर मुझे तो तुम लोगों की चिंता हो रही है, जो जवानी में ही काल के गर्त में सामने वाले हैं।

बगुले की ऐसी बातें सुनकर केकड़ा घबरा गया। “ऐसी के बात हो गयी?” उसने पूछा।

बूढ़े बगुले ने कहा मुझे एक ज्योतिषि ने बताया है कि गृह नक्षत्रों का ऐसा मनहूस योग बना है कि अगले १२ वर्षों तक यहाँ बारिश नहीं होगी। और यह तालाब तो अभी से सूख रहा है देखो जहाँ पानी भरा रहता था वो जमीन आज धुप से तप रही है और ऐसी फट गयी है जैसे सबको निगल ही लेगी।

अब बारिश तो होने से रही और यह तालाब १२ वर्ष तो क्या १२ दिन में ही सूख जाने वाला है। तब सबकी मौत निश्चित है। पर इस तालाब के बाशिंदों को तो कोई चिंता ही नहीं है।

अब तो केकड़ा और भी अधिक घबरा गया। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि तालाब सूख जाने पर उसकी जान कैसे बचेगी। इसलिए उसने बगुले से पुछा तो इसका उपाय क्या है?

बूढ़े बगुले ने कहा इसका कोई अनोखा उपाय नहीं है। उपाय वही है जो दूर-दूर तक अन्य छोटे तालाबों के सारे रहवासी कर रहे हैं। वो अपने परिजनों और मित्रों को लेकर पूर्व दिशा में एक बहुत बड़े पाताली तालाब में जा रहे हैं। उस तालाब में पाताल से पानी आता है इसलिए १२ वर्ष तो क्या २४ वर्षों तक भी अगर पानी न बरसे तो भी वह पाताली तालाब पानी से भरा रहेगा। इस प्रकार दूसरे तालाबों के लोग आपस में इकट्ठे होकर और अपनी शत्रुता को भुला कर अपने लोगों की रक्षा करने में लगे हैं, पर यहाँ तो किसी को कुछ पड़ी ही नहीं है।

बूढ़े बगुले की ऐसी बातें सुनकर केकड़े ने तालाब में जाकर अन्य जीवों को ये बात बताई। देखते ही देखते भयंकर सूखे की यह बात तालाब के पानी में जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी। अब तो तालाब में हर जगह बस एक ही बात हो रही थी। ऐसी चिंतापूर्ण बात उस तालाब के जीवों ने पहले कभी नहीं सुनी थी। जिसने भी सुना वो घबरा गया और अपनी जान बचाने के उपाय सोचने लगा।

कुछ जीव तो बहुत ही अधिक घबरा गए और सोचा क्यों न हम चलकर बूढ़े बगुले से ही सही जानकारी ले लें। ऐसा विचार विमर्श कर ये जीव केकड़े के साथ बगुले के पास पहुंचे। बगुले ने उन्हें वही कहानी फिर से सुनाई जो उसने केकड़े को सुनाई थी।

अब कुछ जीव जैसे मछलियाँ और मेंढक तो बहुत ही चिंतित हो गए। उन्होंने कहा हम कैसे किसी दूसरे तालाब में जा सकते हैं। हम तो पानी से ज्यादा दूर भी नहीं जा सकते, मछलियाँ तो पानी से बाहर ज्यादा देर जीवित भी नहीं रह सकती और उनको जमीन पर चलना भी नहीं आता।

इसपर बगुले ने कहा मैं हूँ ना। मेरा सारा जीवन इसी तालाब के सहारे बीता है और जब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और इस संसार से विरक्त हो गया हूँ तो मैं भी इस तालाब के रहवासियों का भला कर कुछ पुण्य कमा लेना चाहता हूँ। मैं एक-एक कर तुम लोगों को अपनी पीठ पर बैठाकर पाताली तालाब पहुँचा दूंगा।

अब तो उस तालाब के बहुत से रहवासी बूढ़े बगुले के पास आने लगे और उसे मामा, चाचा, ताया, दादा आदि बोल कर उससे पाताली तालाब पहुँचाने का आग्रह करने लगे।

बूढ़ा बगुला एक-एक कर उन्हें अपनी पीठ पर बैठाकर प्रतिदिन पाताली तालाब के कई चक्कर लगाने लगा।

उसकी योजना सफल हो चुकी थी। वह बेवक़ूफ़ और डरपोक मछलियों और मेंढकों को पाताली तालाब ले जाने के बहाने अपनी पीठ पर बैठाता और कुछ दूर लेजाकर एक चट्टान पर पटक-पटक कर मार डालता और उन्हें खाकर अपना पेट भरता। फिर थोड़ा आराम कर और थोड़ा समय आस-पास ही व्यतीत कर वापस आता और उसके इंतजार में जमा हुए जीवों को पाताली तालाब के मजेदार किस्से सुनाता। और पाताली तालाब में गए मेंढक और मछलियाँ कितने खुश है उन्हें बताता।

इस प्रकार छल-कपट और अपनी बुद्धि के बल पर बूढ़ा बगुला अपना पेट भरने में सफल हो गया। धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य सुधर गया और वो काफी मोटा हो गया।

इधर केकड़े ने जब पाताली तालाब के किस्से सुने तो वो भी वहाँ जाने के बारे में सोचने लगा। और एक दिन वो बूढ़े बगुले के पास आया और उससे बोला बगुला मामा आपके पास सबसे पहले मैं आया था और आप मुझे ही पाताली तालाब लेकर नहीं चल रहे।

केकड़े की बात सुनकर बूढ़े बगुले ने सोचा रोज-रोज वही मछलियाँ और मेंढक खाकर मैं ऊब चुका हूँ, क्यों न आज केकड़े की दावत उड़ाई जाय। ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठाया और उस चट्टान की ओर उड़ चला जहाँ उसने मछलियों और मेंढकों को पटक कर मारा था।

केकड़े ने जब एक चट्टान पर हड्डियों का ढेर देखा तो उसने बूढ़े बगुले से पुछा मामा वो सामने उस चट्टान पर हड्डियों का ढेर क्यों लगा हुआ है?

बगुले को केकड़े के भोलेपन पर बहुत हँसी आ रही थी। उसने कहा ये उन मछलियों और मेंढको की हड्डियाँ हैं जिन्हें मैं अपनी पीठ पर बैठाकर लाया था। ऐसा कहकर बूढ़ा बगुला अपनी चालाकी और केकड़े के भोलेपन पर जोर-जोर से हंसने लगा।

अब केकड़ा सारी बात समझ चुका था और उसे अपनी बेवकूफी पर बहु गुस्सा आ रहा था। उसने अपने मजबूत बाजुओं से बगुले की गर्दन पकड़ी और अपने नुकीले दांतों से उसे काट दिया। बूढ़े बगुले की इन्द्रियाँ आज उसकी बुद्धि पर भारी पड़ी थीं, नया स्वाद चखने के चक्कर में आज उसकी इह लीला समाप्त हो गयी।

उधर तालाब पर कई मछलियाँ और मेंढक बूढ़े बगुले का इन्तजार कर रहे थे। हर कोई चाहता था की वह ही बूढ़े बगुले से सबसे पहले मिले ताकि बूढ़ा बगुला उसे पाताली तालाब ले जाये। तभी उन्हें बूढ़े बगुले की गर्दन अपने बाजू में दबाए केकड़ा आता दिखाई पड़ा। केकड़े ने उन्हें बूढ़े बगुले की सारी चाल बतायी।

तालाब के जीव दुख, क्रोध और कृतघ्नता के भावों से भर गए थे। अपने डर पर बहुत शर्मिंदा थे। बगुले के लालच ने ही आज उन सबकी जान बचाई थी।

मित्रों इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है

1. जो काम बल से नहीं हो सकता वो बुद्धि से किया जा सकता है। इसलिए हमें अपनी सफलता के लिए बल और बुद्धि दोनों का प्रयोग करना चाहिए। जिस प्रकार बूढ़ा बगुला अपने बल के कमजोर होने पर अपनी बुद्धि से अपना पेट भरने में सफल हो गया।

2. जब कोई किसी काम को करने की ठान ले और उस काम के लिए जो भी जरूरी हो वो करे तो उसे सफलता अवश्य मिलती है।

3. हमें अपनी इन्द्रियों के वशीभूत होकर अनावश्यक खतरे नहीं लेने चाहिए। जिस प्रकार बगुले ने अपनी जीव्हा के वशीभूत होकर केकड़े के हाथों अपनी जान गवांई।

4. हमें अपने दुश्मनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार मछलियों और मेंढकों ने बूढ़े बगुले पर विश्वास कर अपनी जान गंवाई।

5. हमें डूम्स डे दिखाने वालों यानि प्रलय आने वाली है या बहुत बुरा कुछ होने वाला है ऐसा कहने वालों से सावधान रहना चाहिए।

6. हमें जो खतरे हैं उनसे सदा सावधान रहना चाहिए। अक्सर लोग असावधान हो जाते हैं जिससे दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है।

बूढ़े बगुले की हालत तो मरता क्या न करता वाली थी। लेकिन आपको समाज में ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे जो आपको झूठे डर दिखा कर अपना उल्लू सीधा करते हैं और आपके जान माल का नुकसान करते हैं। क्या आपका भी पाला ऐसे किसी धूर्त और धोकेबाज इंसान से पड़ा है? वह धूर्त पीर, फ़कीर, बाबा, तांत्रिक, ज्योतिषि, डॉक्टर, पुलिस, नेता या अन्य किस पेशे से था? हमें ईमेल या कमेंट के माध्यम से बताएं।

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